मर्ज
मर्ज
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दिल का मर्ज तासीर बनता गया
वो दवा बदन को देते रहे।
घावों का सूखना आदत हो गई
वो मरहम का रंग देखते रहें।
आंखों का छलकना सरेआम हो गया
वो दर्द के नाम खोजते रहे।
तेरा होना चाहत से जरूरत बन गया
वो जरूरत के दाम खोजते रहे।
अब छपवा दो मेरा काम तमाम हो गया
वो खबर का इन्तेजार ना करते रहे।
