आमंत्रण
आमंत्रण
मेघाछन्न व्योम से, प्रिये
बरस रहा हो नीर,
हृदय की भीगी मिट्टी
महक रही हो सौंधी सी,
प्रेम की नव-कोंपलें
फूटने को हों तत्पर।
मन के समस्त भावों का
मुख पे शोभायमान हो
इन्द्रधनुष मनोहर एक,
स्नेहिल सा संगीत कोई
स्वर-लहरियां मधुर बन
प्रतिध्वनित लगे होने।
भावनाओं के अतिरेक से
चाहत भी हो उठी अधीर,
होता हो सब अनायास ही
ऐसे में तुम चली आना…