सूरत-ए-अहवाल
सूरत-ए-अहवाल
इस दौर से पहले कब इतना रंजूर हुआ है
यह इंसान कब इस क़दर मजबूर हुआ है !
अपनी हस्ती पर नाज़ था, दौलत पे ग़ुरूर
जो भी तकब्बुर था सब चकनाचूर हुआ है !
अपनों से भी न मिलने के बहाने ढूंढता था
वक़्त की ऐसी मार कि सब से दूर हुआ है !
ख़ुदा का ख़याल था, न शुक्राने की परवाह
हर बंदा अब उसी रब का मश्कूर हुआ है !
मुसाफ़िर हैं सब और दुनिया महज़ सराय
कोई वहम-ओ-गुमाँ था तो काफ़ूर हुआ है !
क़ुदरत का क़हर, सबक़ है हरेक बशर को
सोचा होगा क्यों ये इतना मग़रूर हुआ है !
वो जो आसमानी-बाप है, रहम भी करेगा
किसको अपने बच्चों पे ज़ुल्म मंज़ूर हुआ है !
सूरत-ए-अहवाल: हालात का नक़्शा; रंजूर: ग़मगीन/ फ़िक्रमंद; तकब्बुर: ग़रूर;
मश्कूर: आभारी; वहम-ओ-गुमाँ: ग़लत-फ़हमी/ शक- शुबहा; काफ़ूर: ग़ायब;
क़हर: प्रकोप; बशर: इंसान; मग़रूर: अहंकारी; आसमानी-बाप: ख़ुदा/ रब