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मोहनजीत कुकरेजा (eMKay)

Tragedy

4.5  

मोहनजीत कुकरेजा (eMKay)

Tragedy

सूरत-ए-अहवाल

सूरत-ए-अहवाल

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इस दौर से पहले कब इतना रंजूर हुआ है

यह इंसान कब इस क़दर मजबूर हुआ है !


अपनी हस्ती पर नाज़ था, दौलत पे ग़ुरूर

जो भी तकब्बुर था सब चकनाचूर हुआ है !


अपनों से भी न मिलने के बहाने ढूंढता था

वक़्त की ऐसी मार कि सब से दूर हुआ है !


ख़ुदा का ख़याल था, न शुक्राने की परवाह

हर बंदा अब उसी रब का मश्कूर हुआ है !


मुसाफ़िर हैं सब और दुनिया महज़ सराय

कोई वहम-ओ-गुमाँ था तो काफ़ूर हुआ है !


क़ुदरत का क़हर, सबक़ है हरेक बशर को

सोचा होगा क्यों ये इतना मग़रूर हुआ है !


वो जो आसमानी-बाप है, रहम भी करेगा

किसको अपने बच्चों पे ज़ुल्म मंज़ूर हुआ है !


सूरत-ए-अहवाल: हालात का नक़्शा; रंजूर: ग़मगीन/ फ़िक्रमंद; तकब्बुर: ग़रूर; 

मश्कूर: आभारी; वहम-ओ-गुमाँ: ग़लत-फ़हमी/ शक- शुबहा; काफ़ूर: ग़ायब; 

क़हर: प्रकोप; बशर: इंसान; मग़रूर: अहंकारी; आसमानी-बाप: ख़ुदा/ रब


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