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Mohanjeet Kukreja

Abstract

4.5  

Mohanjeet Kukreja

Abstract

गुज़रते हैं हम...

गुज़रते हैं हम...

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ठोकरों से ही सीख कर निखरते हैं हम

नाकामी से क्यों इस क़दर डरते हैं हम!

 

उतार-चढ़ाव तो ज़िन्दगी का हिस्सा है

कभी डूबते हैं और कभी उभरते हैं हम!

 

एक अजब सा रिश्ता है दोनों के बीच

टूटता अगर दिल है तो बिखरते हैं हम!

 

मिट्टी है सब मिट्टी में सबको मिलना है

किस लिए फिर यूँ बनते संवरते हैं हम!

 

उम्र गुज़र गई यह समझने समझाने में

वक़्त तो ठहरा रहता है गुज़रते हैं हम!


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