शुक्राने की कभी बात करो
शुक्राने की कभी बात करो
कौन तुम्हारी बात करेगा, ख़ुद तो कोई ऐसी बात करो
अपने में हमेशा रहते हो, कुछ औरों से भी बात करो !
जीने से उकताए रहते हो और मरने से भी डरते हो...
ख़ुश रहो जो मिला उससे, शुक्राने की कभी बात करो !
शिकायत हमेशा करते हो, कमियां ही तुमको दिखती हैं
काँटों का ज़िक्र भूल कर, कुछ फूलों की भी बात करो !
रोने को कंधा चाहिए तुमको, ख़ुशी भी बांटा करो कभी
कांधे चार मिल जायेंगे, अभी दिल से दिल की बात करो !
ख़ुद की चिंता, ख़ुद के मसले, बस उनमें उलझे रहते हो
ग़ैरों के दुःख-दर्द को समझो, उनकी भी कुछ बात करो !