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सोनी गुप्ता

Tragedy

4.5  

सोनी गुप्ता

Tragedy

दुख की चादर

दुख की चादर

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दुख की चादर ओढ़े कौन खड़ा है वो

समय समय का फेर है बदल रहा है जो

हो रही कैसी ये बेमौसम- सी बरसात है , 

मन में दुखों का घर है बहुत से सवालात हैं, 

दुख का कारण कौन पूछता सुख में साथ देते सब, 

कैसा यह समय आया है अजब-गजब से दिखते सबII


अपने गम में नितांत अकेले बैठे हैं

अपने ही अहम पर जाने क्यों वो ऐठें हैं, 

रह -रह कर मन में एक टीस सी उठती रहती है, 

जिंदगी एक बोझ सी क्यों अंतरात्मा मेरी कहती है, 

दुखियारा यह जग सारा किसको अपना दुख सुनाऊँ, 

कौन सुनेगा मेरी अब किसको मैं अपनी व्यथा बताऊँII


दुख पत्थर सा प्रतीत हो मन भारी हो जाता है

विडंबना देखो द

ुख में, कौन अपना गले लगाता है, 

जाने किन हादसों ने बदल दिया मेरे जीवन का रुख

खुशियाँ आकर पीछे चली गईं और रह गया सिर्फ दुख, 

जिंदगी दुखों का चादर ओढ़कर इस दौर से गुजर रही है

जहाँ सांसे हो रही कम और जिंदगी हमारी बिखर रही है‌ II


हर रातें काली स्याही रातों सी लगती है, 

जीवन में सुख की छाया अब कहाँ दिखती है, 

ये दुख विश्वास तोड़ कर उम्मीदें खाली कर गया, 

आज उम्मीदों के सफर में सिर्फ अकेला मैं रह गया, 

उफ्फ़ अब इन आँखों से ये अश्रु जाने क्यों छलक रहे, 

दुख की चादर ओढ़े हम खड़े और रिश्ते हमारे बदल रहे , 

दुख की चादर ओढ़े हम खड़े और रिश्ते हमारे बदल रहे II



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