शब्दों से मिले ज़ख्मों का कोई मरहम नहीं होता
शब्दों से मिले ज़ख्मों का कोई मरहम नहीं होता


भर जाता तलवार का घाव, शब्दों का नहीं भरता है,
शब्दों से मिले ज़ख्मो का, कहांँ कोई मरहम होता है,
कितनी भी कोशिश करो,बात दिल से निकालने की,
किसी ना किसी मोड़ पर वो,उजागर हो ही जाता है।
मुख से निकला शब्द बदल देता है ज़िंदगी की चाल,
शब्दों से जुड़ाव इस जीवन में, शब्दों से ही अलगाव,
शब्द है कोमल पुष्प तो शब्द ही कांँटो की चुभन भी,
इसलिए शब्दों का सोच समझकर ही करो इस्तेमाल।
गुजरते वक़्त के साथ शब्दों के घाव बन जाते नासूर,
गांँठ पड़ जाती है रिश्तो में रिश्ते हो जाते खुद से दूर,
सर्प का ज़हर है शब्द तो चंदन सी इसमें है महक भी,
शब्द कभी शोर, कभी ख़ामोश है तो कभी है मजबूर।
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शब्दों से बदल जाते हैं रास्ते, बदल जाती है ज़िन्दगी,
शब्द बहक जाए तो घाव बने महक जाए तो औषधि,
शब्दों में मिठास प्रेम घोले कड़वाहट काटने को दौड़े,
नज़र नहीं आते शब्दों के घाव, पर कलेजा ये चीरती।
चाकू छुरी खंजर तलवार, सबसे तेज शब्दों की धार,
लहूलुहान होती है आत्मा जब झेलती शब्दों का वार,
तन पर घाव नहीं दिखता पर मन कर देता है छलनी,
शब्दों का असर इतना कि ज़िन्दगी भी जाती है हार।
शब्दों का गलत अर्थ निकालने वालों की कमी नहीं,
एक बार निकल जाए मुख से मिलती इसे ज़मीं नहीं,
इसलिए तो सदैव सोच समझ कर ही शब्दों से खेलो,
शब्द खामोश कर देती आंँखें, बचती उनमें नमी नहीं।