मजदूर
मजदूर
विधा- द्रुत विलंबित छंद
विधान- नगण भगण भगण रगण
॥ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः॥
शिखर पे मजदूर चढ़ा रहा
सकल भार सदैव उठा रहा
निज शरीर सदैव सुखा रहा
सुख अनूप सदैव लुटा रहा॥१॥
उदर भूख सदैव दबा रहा
सतत तोष अतीव दिखा रहा
निश दिवा वह शोषित हो रहा
धनिक वर्ग सुपोषित हो रहा॥२॥
श्रम कठोर करे तब जी रहा
कटुक घूँट सदा वह पी रहा
सकल कष्ट भुला सुख दे रहा
मुदित चित्त महा दुख ले रहा॥३॥
