STORYMIRROR

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4.5  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

सैलाब

सैलाब

1 min
369


बह गया था कुछ ? या सब कुछ  

सैलाब ऐसा भी आया था , एक दिन

तिनको से तैरते सपने , बह चले थे टूटने

मिट्टी की गुड़िया मानो बारिश में नहा ली , आख़िरी बार

मिट जाने को , मिल जाने को धरा से फिर एक बार । 

हँस दिए तुम , दर्द से भरी हँसी  

मैं रोता रहा जार जार ,बैठ अकेला अँधेरे कोने में । 

आँसू क्यों ख़त्म नहीं होते ? 

बहते रहते बन कर इक धार ।

रोकने को इन पागलों को ,

नहीं कोई बाँध तैयार । 

एक सैलाब ऐसा भी आया , एक बार

विश्वास बह गया , भरोसा भी दरक गया । 

रूठ कर ? या होकर मजबूर ,

तू भी चला गया । 

काम न आया कोई मनुहार । 

एक सैलाब ऐसा क्यों आया उस बार? 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy