बेपनाह
बेपनाह
मेज़ के उस पार, एक लड़की बैठी है अभी भी।
शर्मीली नहीं, स्पष्ट वक्ता, हर बात पर बेबाक राय।
बेपरवाही से गालों पर आती लट को हटाती,
आँखों में आँखें डाल, हर बात समझाती।
बीच / बीच में झिड़क देती,
फिर प्यार से मुस्कुराती।
तुम दुनिया की सबसे हसीन बेशक न हो,
मेरी दुनिया की सबसे हसीन, सबसे ज़हीन लड़की थी।
आज भी हो ।।
तुम जाने कहाँ हो ??
मैं बैठ जाता हूँ उसी मेज़ के इस पार,
तुमसे आज भी बहस करता, डाँट खाता,
तुम मुस्कुराती हुई, आज भी यहाँ हो।
न मेरे इश्क़ में बदलाव आया, न सोच में मेरी,
मैं दीवाना तेरा, बस तेरा,
तुम मेरी ज़मीन, मेरा आसमान हो ।।