सुबह
सुबह
1 min
425
सूरज आज भी चमक बिखेर रहा था,
रोज की तरह।
उसके कमरे के पर्दे को, मैंने सरका दिया,
सोने सी किरने, फर्श की टाइलों से प्रतिबिम्बित हो,
दीवारों को चमकाने लगी।
अलमारी के दरवाजे में लगा दर्पण चमक उठा।
पर्दा कभी भी नहीं हटाया उसने,
अपनी अलग दुनिया में रहता था।
आज की सुबह उसके बिना, खाली सी
अलग सी, उदास सी थी।
उसका सूरज कुछ घंटों पहले उग आया होगा।
पता नहीं ? उसने आज भी पर्दा हटाया होगा ?
अपने कम होते बालों को जतन से संवारा होगा।
एक नई सुबह उसकी भी आई होगी,
नए देश में, नए वेश में,
एक नया संदेश लाई होगी।।