प्रणय
प्रणय
देख चांद को चांदनी का मन मयूर सा नाचे क्यूं ?
मिली हंसिनी-हंस से, तन-मन इतना महके क्यूं ?
हिम-सी श्वेत हंसनी बोली! प्रिय प्रणय मिलन को आई मैं!
अन्देखा-सा कर के मुझको तुम अलग-थलग इतराते क्यूं?
बिम्ब देख आनन्दित हो सुंदर सुरभित शीतल जल में
इठला-इठला कर धुन में अपनी, गोते खूब लगाते क्यूं ?
ओढ़ के चांदनी ,झुके नयन से आज नीलाम्बर भी
श्वेत युगल हंस प्रणय भाव से इतना आनंदित क्यूं?
मूंद कर अंखिया सब्ज सज़र भी बन प्रहरी
मृदु-मंद मुस्कान लिए अगुआई करने आते क्यूं?
सृष्टि रचित सारी रच़ना, देख हमारी प्रीत निराली
बिन वाद्ययंत्र के मधुर मौन संगीत सुनाती क्यूं ?
शामिल सब हैं झूम -झूम के अब तेरी-मेरी खुशियों में
तरण-ताल में सजी सेज देख, धरती अम्बर झूमे क्यूं ?
तेरे-मेरे मध्य के फासले जैसे -जैसे होते कम
होती हृदय में इतनी प्यारी-प्यारी हल-चल क्यूं?
आओ !प्रिये शुद्ध हृदय से, प्रणय रस श्रृंगार करें
देख हमारी सत् प्रीत को, मानव भी अंगिकार करें