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Manjula Pandey

Romance

4  

Manjula Pandey

Romance

प्रणय

प्रणय

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देख चांद को चांदनी का मन मयूर सा नाचे क्यूं ?

मिली हंसिनी-हंस से, तन-मन इतना महके क्यूं ?


 हिम-सी श्वेत हंसनी बोली! प्रिय प्रणय मिलन को आई मैं!

अन्देखा-सा कर के मुझको तुम अलग-थलग इतराते क्यूं?


बिम्ब देख आनन्दित हो सुंदर सुरभित शीतल जल में

इठला-इठला कर धुन में अपनी, गोते खूब लगाते क्यूं ?


ओढ़ के चांदनी ,झुके नयन से आज नीलाम्बर भी

 श्वेत युगल हंस प्रणय भाव से इतना आनंदित क्यूं?


 मूंद कर अंखिया सब्ज सज़र भी बन प्रहरी

 मृदु-मंद मुस्कान लिए अगुआई करने आते क्यूं?


सृष्टि रचित सारी रच़ना, देख हमारी प्रीत निराली

बिन वाद्ययंत्र के मधुर मौन संगीत सुनाती क्यूं ?


शामिल सब हैं झूम -झूम के अब तेरी-मेरी खुशियों में

तरण-ताल में सजी सेज देख, धरती अम्बर झूमे क्यूं ?


तेरे-मेरे मध्य के फासले जैसे -जैसे होते कम 

होती हृदय में इतनी प्यारी-प्यारी हल-चल क्यूं?


आओ !प्रिये शुद्ध हृदय से, प्रणय रस श्रृंगार करें

देख हमारी सत् प्रीत को, मानव भी अंगिकार करें




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