बात करते हैं
बात करते हैं
चलो माज़ी को मुस्तकबिल बनाने की बात करते हैं।
जो यह गया पीछे,उसे आगे बढ़ाने की बात करते हैं।।
गढ़ ली बहुत कहानियां,मजलूमियत पर हमने।
चलो!आज मजलूमों को उठाने की शुरुआत करते हैं।।
बहुत दूर निकल आये तन्हा,जिदों पर अपनी।
चलो!जिद छोड़ कर फिर साथ चलने की बात करते हैं।।
उम्र भर ठोकरों से पा कर ज़ख्म हम हो गए पुख्ता।
चलो!भूल कर ज़ख्म अपने, गैरों को मरहम लगाने की बात करते हैं।।
उम्र भर निभाते रहे बेवजह की बेरुखी तुमसे।
चलो!आज मिलकर दिल लगाने की बात करते हैं।।
वक्त सितमगर् है कह,बहुत कोस लिया वक्त को हमने।
बदल कर मिजाज अपना,वक्त के धारे में बहने की बात करते हैं।।
सदियां गुजर गई,तुझे तसव्वुर में भी देखें "मंजुल"।
चलो!छोड़ कर रंजिशें, महफ़िल-ए-मुलाकात सजाने की बात करते हैं।।
