आत्म दीपो भव
आत्म दीपो भव
क्यूँ मांगते हो औरों से प्रकाश, अपना प्रकाश स्वयं बनो,
क्यूँ चलते हो औरों की राह पर, सही मार्ग तुम ख़ुद चुनो।
क्या हुआ जो कोई नहीं अगर साथ, अपने सारथी ख़ुद बनो,
क्या हुआ जो राह है अँधेरी, ख़ुद के दम पर आगे बढ़ो।
कोई सदा साथ नहीं चलता, सबकी राहें हैं अलग अलग,
मेरा पूरब, तुम्हारा पश्चिम, सबका छोर है विलग विलग।
पल दो पल का ही साथ होगा, फिर तो हमें बिछड़ना है,
मेरा प्रकाश फिर मेरे साथ, तुम्हें तो अँधेरे संग चलना है।
दूर भगा दो तुम मन से अंधेरा, गढ़ो अपना ज्योति मार्ग,
अब भी देर नहीं हुई है बंदे, जाग ओ बंधु अब तो जाग।
मैं दिखा सकता हूँ दिशा, पर राह पे तुम्हें ही चलना है,
फिर किस सोच में पड़े हो बंधु, आगे तुम्हें ही बढ़ना है।
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p class="ql-align-justify">“मैं तो हूँ सिर्फ मार्ग दाता”, कहते थे यही गौतम बुद्ध,
अपना मार्ग तुम ख़ुद बनाओ, न करो जीवन अवरुद्ध।
मार्ग प्रशस्त करो ख़ुद अपना, रखो मन को सदा शुद्ध,
खुद के जज्बे से लड़ो संग्राम, चाहे जितना बड़ा हो युद्ध।
समझो ख़ुद ही ख़ुद के धर्म का मर्म, तभी मिलेगा सार,
सत्कर्म की राह पर चलना, न हो मन में कभी विकार।
जलाकर स्वयं दीप प्रगति का, करना ख़ुद आत्म शुद्धि,
अपना दीप ख़ुद बन कर, रचना ख़ुद ही ख़ुद की परिधि।
“अपना हाथ जगन्नाथ”, बूझ लो तुम इस बात का सार,
अपने भाग्य का करो ख़ुद निर्माण, यही वक़्त की पुकार।
बाहर की रोशनी कब तक होगी, पैदा करो अंदर प्रकाश,
हर कमजोरी को दूर भगाओ, पैदा करो मन में विश्वास।