रूह को रूह से मिलते देखा है
रूह को रूह से मिलते देखा है
मुझ में खुद को ही खोज रहे हो,
तो क्या मुझे तुम यों ढूँढ पाओगे,
मुझे खोजते खोजते तुम खो गये,
क्या खुद को ही खुद ढूँढ पाओगे?
चाहत की तुम यों बात करते हो,
चाहत क्या होती है, जानते भी हो,
एहसास कैसा है, क्या समझते हो,
जीने का अर्थ ही क्या समझते हो?
खुद को भुलाकर ही यों डूब जाना,
अपनी ही तुम पहचान छुपा लेना,
खफ़ा हो जाये दुनिया सारी चाहे,
मगर उस ख़्वाब को तुम जी लेना।
माना कि हक़ीक़त नहीं है वो,
तसव्वुर में ही तुम दीदार कर लेना,
पलकें झपकना ही बस भूल जायें,
यों ही तुम बस इज़हार कर लेना।
किस मुंह से प्रेमी बने फिरते हो,
जिस्म के दीवाने बने फिरते हो,
अपनी ही खुशी की खातिर तुम,
उन के लिए श्मशान हुए फिरते हो।
बहर को साहिल से मिलते देखा है?
चंदा को चकोर से मिलते देखा है?
चाहत की वो मिसाल यों क्या होगी,
जब रूह को रूह से मिलते देखा है।

