माँ
माँ


क्या लिखूँ मैं उस शख़्स के बारे में,
जो बड़ी हो कर भी छोटी है हम से,
और हम कहते हैं तुमसे नहीं होगा,
सीखने पे खुशी का एहसास होगा।
वो माँ ही तो होती है आखिर हमारी,
ज़रा ज़रा सी खुशी पे जान देती है,
और हम तो जीते जी भूल जाते हैं,
सपनों में तारा बन के दिखाई देती है।
एहसास जब दूरियों का हमें होता है,
आँसू भी छलका नहीं अब हम पाते हैं,
यादों से अब जन्नत का ध्यान आता है,
जाने के बाद ही हम क्यों सोच पाते हैं?