संगम नगरी
संगम नगरी
धन्य धरा अपने भारत की, वसी जहाँ संगम नगरी।
बूँद बूँद जिस संगम की है, अनघ अमिय अद्भुत गगरी॥
गंगा यमुना औ सरस्वती, निर्मल नीरा नित मिलतीं।
उस संगम के पावन तट पर, संस्कृति भारत की खिलती।
पुण्य भूमि पर क्रीडा करती, संगम जल पावन लहरी।
धन्य धरा अपने भारत की, वसी जहां संगम नगरी॥
प्रकृष्ट यज्ञ जहाँ नित होते, नाम प्रयाग धरा पाती।
भास बाँटने इस धरती पर, अटल सत्य जलती बाती।
उस संगम का मान बढ़ाने, अमिय सरित बहती गहरी।
धन्य धरा अपने भारत की, वसी जहाँ संगम नगरी॥
महाकुंभ बारह वर्षों में, पावन संगम तट लगता।
कल्पवास कर माघ मास में, धर्म भाव उर में जगता।
अवगाहन नित दिव्य सलिल का, भरता पुण्यों की गठरी।
धन्य धरा अपने भारत की, वसी जहाँ संगम नगरी॥
