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Ganesh Chandra kestwal

Inspirational Others

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Ganesh Chandra kestwal

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शरद

शरद

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     ॥ॐ श्री वागीश्वर्यै नमः॥

               शरद

          

जल बरसना रुक गया है, लुप्त घन सब हो गए। 

नीर निर्मल अब नदी में, दूर तट हैं हो गए।।१।। 


केकड़े औ दद्रु फिर अब, नीर में आने लगे। 

शरद ऋतु शुभ आ गई है, अन्न सुंदर हो गए।।२।।


रात लंबी और ठंडी, दिवस लघु होने लगे।

घट गए घंटे दिवस के, काम प्यारे हो गए।।३।। 


नील नभ से चांँद भी निज, चांँदनी देने लगा।

ओढ़ सब सित चांँदनी को, श्वेत शोभित हो गए।।४।।


धूप हारे शीत से अब, रात ठंडी हो रही।

पत्तियांँ भी पेड़ की सब, पीत वर्णी हो गए।।५।।


मांँगते आशीष उनसे, हैं पितर निज पूर्व से।

पा सभी आशीष उनका, खुश सभी नर हो गए।।६।।


काटते फसलें पकी जो , ढेर भी उनकी करें।

धान्य सारा पा कृषीबल, अति मुदित मन हो गए।।७।।



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