काफिला
काफिला
चार कदम मुश्किलों के जो अकेले ना चल सके
मुख्तियार भटकी दुनिया के वो क्या बन पाएंगे
राहें जिसे खुद की मंज़िल की ही न पता हो
भटकते मुसाफिरों को वो क्या राह दिखाएंगे
राज दिलों पर करना है तो दिल में उतरना पड़ता है
पीछे तेरे हो ले दुनिया एसी राह से गुजरना पड़ता है
यू ही सम्भव नहीं हो जाता,आसानी से कुछ भी l
अलबत्ता एक जोरदार आरंभ,भी करना पड़ता है ll
काफिला खुद ब खुद, तैयार नहीं हो जाता l
कुछ कर गुजरने का, हौसला भी भरना पड़ता है ll
