डरने से क्या होगा
डरने से क्या होगा
कुछ यदि करना है हासिल
तो कुछ खोने का डर कैसा
जीने की जब ख्वाहिश नहीं
तो दहशत का ये ज़हर कैसा
बेखौफ चला चल राही तू
मैदान ए जंग में सिकंदर जैसा
ज़ख्म मिलेंगे बेशक तुझको
उसको भरने से क्या होगा
अब डरने से क्या होगा
फतह का दिल में है जुनून
तो संकट की परवाह ना कर
जीत का गर पाना है ताज तो
संघर्षों में तू आह ना भर
थककर यूं ना बैठ अभी तू
करना हैं जो वो अभी तू कर
चाहतें ग़र सागर की है तो
गगरी भरने से क्या होगा
अब डरने से क्या होगा