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Sachin Tiwari

Inspirational

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Sachin Tiwari

Inspirational

न्याय

न्याय

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उसकी ही छांव तले आराम करने लगे 

जिसे काटते- काटते थक गए थे, बेपीर 

बेशर्मी की इन्तेहाँ से, वाकिफ जो न थे 

न कुल्हाड़ी रूकी, न ही फलों का गिरना 


फिर एक आखिरी प्रहार भी कर दिया 

और धराशायी हो गया धरा का रक्षक 

बेजुबां, शायद कुछ कहना चाह रहा था 

पर क्यूं स्वार्थी कानों तक बात न पहुंची 


टुकड़े टुकड़े कर दिए हर एक शाख के उसने

जलती धूप में खुद भी पसीना पसीना हो गया 

शाख के हर एक टुकड़े की अहमियत थी, कि 

चूल्हे धरी कढ़ाई को भी आग का इंतजार था 


वो अब, हमसे शायद ही कुछ उम्मीद रखते हों 

पर हम तो उनके बिना निश्चित ही नाउम्मीद है 


क्यों न हम सब मिलकर

अब उसको न्याय दिलाए 

हर एक चोट के बदले उसकी

हम सौ - सौ वृक्ष लगाएं 



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