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Sachin Tiwari

Inspirational

4.5  

Sachin Tiwari

Inspirational

हुजूम

हुजूम

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अरज़ करता रहा ज़माना, किसी की एक न सुनी

बस अपनी ही मन-मर्जियां, मैं चलाता चला गया।

तंज कब बदल गए तारीफ़ों में, पता ही न चला,

आग-ए-इसरार में खुद को, मैं जलाता चला गया।।   


हुजूम नागवार था, तन्हाई से इश्क इस कदर हुआ 

कदमों के निशां पर, काफिला मैं बनाता चला गया।  

मुसाफिर था एक, अनजान मैं बेख़बर चलता रहा 

इरादों से अपने, राह ए मंज़िल मैं बनाता चला गया।। 

  

तूफ़ानों को मैं झेलता, तो कभी आँधियों से खेलता 

दिल में लौ अपने जीत की, यूं ही जलाता चला गया 

बैरी तो कई थे मेरे, पर मेरा कुछ भी बिगाड़ न सके 

जिद से, अपने बैरियों को राह से मैं हटाता चला गया 



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