शुरुआत
शुरुआत
वक़्त है शुरुआत का मुश्किलें है जरूर
नादां हूं मैं अभी और मंज़िल भी है दूर
आगाज हो ही गया तो अंजाम से डर कैसा
मंजिलों को पाने का चढ़ गया दिल में फितूर
दायरा ए वक़्त भी सीमित वक़्त को है ये गुरूर
चाहा है तो पा ही लेंगे चाहे जितने हो मजबूर
झोंक दिया जब खुद को हालातों की इस भट्टी पर
दिख जायेगा इन आँखों में चाहत ए मंज़िल का नूर
