कुछ बातें बस ऐसे ही!
कुछ बातें बस ऐसे ही!
मांगते क्यों हो पुरानी बातों का हिसाब
ऐसे कभी नहीं निभते हैं रिश्ते जनाब
क्यों घूमते हो उनके दर पर दर- ब - दर
जो रखते हैं सिर्फ मलकियत का रुआब
मंजिलों की तलाश में अब और न भटक
हकीकत परखोगे तो कहां मिलेंगे जवाब
जब इल्म हो रंजिशें हैं, गर्द - ओ - गुबार है
एहतियात बरतो गर कांटों से भरे हो गुलाब
हम मसरूफ रहे और मसले खड़े होते गए
वफादारी के अलग ही है आजकल खिताब
ग़म ए आशिकी में न हो परेशान ए दिल
मेरी आंखों में गर कुछ है तो तेरा ही ख़्वाब.....