घुट जाओगे अंदर ही अंदर
घुट जाओगे अंदर ही अंदर
घुट जाओगे अंदर ही अंदर,
तुम बिना मेरी हस्ती के,
हँसते थे क्योंकि तुम मेरे संग,
और बिताते थे पल मस्ती के।
फिर अचानक से तुममे बवाल आया,
बेवजह मन में एक ख्याल आया,
कि शायद हम तुम पर मरने लगे हैं,
तुम्हारी दोस्ती को प्यार में बदलने लगे हैं।
हम यूँही छेड़ा करते थे तुमको,
क्योंकि तुम छिड़ जाते थे हमसे,
मगर ऐसा घटिया ख्याल कभी भी,
लाते ना थे अपने मन में कसम से।
तुम्हे गंवारा ना हुआ ये साथ हमारा,
तुमने छोड़ दिया तब समूह प्यारा,
बस जाते - जाते कर गये कुछ शब्द नाम,
कि अब ना मिलेंगे कभी फिर यूँ आम।
तुम्हारी घुटन अब हमने महसूस की,
जब हँसी को भी तुमने तवज्जो ना दी,
इस ज़िन्दगी को मिली ना जाने कितनी शाम,
फिर क्यूँ घुटन के पलों को करें अपने नाम ?
इसलिये बेवजह मन में ज़हर ना लावें,
अपनी मनोस्थिति सबको खुल कर बतावें,
वरना घुट जाओगे अंदर ही अंदर,
डूब जाओगे किसी दिन गहरे समुन्दर।।
