सुरखाब के पंख
सुरखाब के पंख
जब कभी ज़िंदगी डांटने पे आ जाती है
खुदा की खुदाई भी मुख मोड लेती है
कुछ कड़वाहटें शहद से भी मीठी होती है
ज़िन्दगी इन्हीं से बेहतर सीखती रहती है
ज़ुबान ही है जो रिश्तों की गहराई नापती है
गर यह डसे, जिंदगियां बर्बाद कर जाती है
तकलीफें आकर,तदबीरें सिखाती हैं
वरना जिंदगी बेमतलब की रह जाती है
हौसला किनारों पर नहीं भंवर में उभरता है
मरहबा वह जिंदगी जो भंवर से ही उलझती है
कुछ लिखकर भी कुछ और लिखने की चाह
यह स्याही तो कितने ही दबे गुबार बहाती है
सब बखूबी जानते हैं आसमान का क्या वजूद
सुरखाब के पंख दो, हर जिंदगी उड़ना जानती है..
✍️ रतना कौल भारद्वाज
