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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Romance Classics

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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Romance Classics

अंदर का शोर

अंदर का शोर

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अंदर का शोर सोने नहीं देता
बाहर जमाना रोने नहीं देता

 कत्ल होते हैं बेशुमार यहां पर
कातिल खून दिखाने नहीं देता

 कुछ वाक़यात बोल नहीं पाते
लफ़्ज़ ए लिहाज लिखने नहीं देता

 जहालत भरी है जिसमें खाकी में
 इंसानी फितूर जीने नहीं देता

 इंसान गिर कर उठ सकता है पर
कोई भी ठेकेदार उठने नहीं देता

 मंजिल सब को मिल ही जाती
बेरंग ज़माना राह बताने नहीं देता

 अंधेरों से अपना रिश्ता टूटता जरूर
अपना सूरज कोई उगने नहीं देता

 हर इंसान मोहब्बत में मुतफ़िक़ हैं
ज़माना इज़हार करने नहीं देता

 करते हैं उनसे मुलाकात ख्यालों में
 हकीकत में कोई मिलने नहीं देता


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