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Rita Chauhan

Abstract

4.7  

Rita Chauhan

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हिंदी दिवस

हिंदी दिवस

2 mins
995


जब मैं इस जहाँ में आयी,

माँ की भाषा सबसे पहले जान पायी,

वो दुलार देती मुझे, प्यार से पुचकारा करती,

और बिन शब्दों के मैं भी सब समझ जाया करती,


बिन शब्दों के भी विस्तृत था हमारा प्यार,

मेरी माँ का निस्वार्थ प्रेम और लाड दुलार।


धीरे - धीरे निशब्द प्रेम को मिला

शब्दों व् व्याकरण का आधार,

और इस तरह से और अधिक

प्रेम का हमारे बीच हुआ संचार।


देवभाषा संस्कृत है जिसकी जननी

देवनागरी लिपि है महान,

ऐसी दिव्य मेरी मातृभाषा

हिंदी है इसका नाम,


सर्वाधिक सुव्यवस्थित है

जिसकी वर्णमाला,

वैज्ञानिक है स्वर और व्यंजन

की व्यवस्था,


हृस्व, दीर्घ, प्लुत हैं स्वर,

व्यंजन स्पर्श,अंतः स्थ,उष्म तथा

आगत,

देते हैं भाषा को आसानी से

याद करने की राहत,


प्रत्येक अक्षर करता है एक

अलग ध्वनि का निर्माण,

तभी तो कोई असमंजस नहीं

हिंदी सीखना हो जाता है

बिलकुल आसान।


अब क्यूंकि ध्वनि से अलग है हर अक्षर

इसलिए जो बोलते हैं,

वही आसानी से समझ के लिख

देता है कंप्यूटर।


जो लिखते हैं,

वही स्पष्ट पढ़ते हैं,

कोई गूंगे अक्षर नहीं,

इसलिए भ्रम की कोई

सम्भावना भी नहीं।


भाषा है बड़ी ही

व्यवहारिक,

हर सम्बन्ध के लिए

यहाँ अलग एक शब्द है।

प्रारम्भ में होता है नमस्कार,

जो स्वत : ही आने नहीं

देता हमारे अंदर अहंकार।


जब कभी भी भावों की

बात है आती,

तब सर्व प्रथम इसके लिए,

सर्वश्रेष्ठ भाषा मैं तो

हिंदी ही जान पाती।


सौंदर्य से परिपूर्ण है हिंदी

वैसे ही जैसे शोभा देती है,

एक स्त्री के माथे पर बिंदी।


विश्व में द्वितीय स्थान पर

सबसे अधिक बोली जाने वाली

भाषा है हिंदी,

भारतीय संस्कृति का 

विदेशों में भी ध्वजारोहनण

करने वाली भाषा है हिंदी।


जर्मनी, रूस और दूसरे देश

जैसे जापान,

अपनाते हैं सदा ही

मातृ भाषा,

इसी कारण से विश्व में

दिखते हैं इतने महान।


सबसे अच्छी बात,

भाषा है हमारी बहुत

ही लचीली,

दूसरी संस्कृतियों की

हर अच्छाई को झट से स्वयं

में है मिला लेती।


सबसे मिल जुल कर है रहना

ये हमें हिंदी है सिखाती,

छोटे बड़े सबका आदर

सदैव करना,

ये भी हमे हिंदी ही सिखाती।


सभी में उस परब्रह्म का अंश है

तुम में, मुझमें कोई भेद नहीं,

ये भी तो हमारी प्यारी भाषा

हिंदी ही हमें सिखाती।


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