गुरु
गुरु
जिसके जीवन में गुरु नहीं,
उसका जीवन शुरू नहीं।
यूँ तो जी लेते हैं बिन
गुरु के भी कुछ लोग,
पर जीना कैसे है,
ये कोई यहाँ समझ पाता नहीं,
भेज कर इस संसार में,
प्रभु ने किया मुझ पर उपकार,
यहाँ मेरी माँ से मेरा हुआ साक्षात्कार,
मुझे बोल देने वाली,
अच्छे - बुरे का बोध करा,
संस्कारों से मुझे पोषित करने वाली,
मुझे मेरी मातृभाषा सिखाने वाली,
मुझ अबोध को आसपास की वस्तुओं का
बोध कराने वाली,
मेरी माँ ही है मेरी प्रथम गुरु,
मुझे इस संसार में लाने वाली।
है हृदय ताल से मेरी प्रथम गुरु को मेरा वंदन,
जिसके कारण ही मुझे मिला है ये अनमोल जीवन।
मेरा आदर उन शिक्षकों को भी,
जिन्होंने मुझे शिक्षित कर,
दिया मुझे पाठ्यक्रम से जुड़ा ज्ञान,
जीविकोपार्जन के साधनों का
इन्होंने ही दिया मुझे समाधान।
और फिर आया मेरे जीवन का
वो अलौकिक क्षण,
जिसमें मेरे जीवन को
दिशा देने वाले
गुरु के हुए थे मुझे दर्शन।
वास्तविक जीवन मैंने
गुरु से पाया,
उन्होंने ने ही मुझे
इस जीवन के काबिल बनाया,
मेरा मुझसे परिचय गुरुवर ने कराया,
यूँ ही चल रही थी बिना लक्ष्य के मैं
दे लक्ष्य मेरे जीवन को तुमने सार्थक बनाया,
मुझे थाम कर तुम्हीं ने सही से चलना सिखाया,
था जीवन अँधेरा,
आपने ही उजाला दिखाया,
मेरे जीवन को यूँ उज्ज्वल बनाया,
मेरा उस पार ब्रह्म से साक्षात्कार कराया,
हाथ पकड़ कर भाव सागर को
गुरुवार आपने ही पार कराया।
चल तो मैं पहले भी रही थी,
पर किस ओर चलना चाहिए मुझे
उसका सही रास्ता आपने मुझे दिखाया,
आपके आने से,
यूँ हुआ शुरू मेरा जीवन,
अब हर पल मेरा मन करता है
आपका ही वंदन।
यूँ ही व्यर्थ चला जाता ये जीवन,
यदि न होता इसमें गुरु का आगमन,
सच में जीवन सार्थक हुआ है ,
जिस कार्य हेतु प्रभु भेजते हैं हमें यहाँ,
गुरु के माध्यम से वो कार्य पूरा हुआ है।
है ईश्वर से भी ऊपर
गुरु का स्थान,
देकर नव जन्म शिष्य को
आप बन जाते हो ब्रह्म,
रक्षा कर अपने शिष्य की
करते हो विष्णु कर्म,
करने से समस्त दोषों का संहार,
हो जाते हैं आपमें ही महेश्वर के भी साक्षात्कार,
आपके ही कारण सब जाना है मैंने,
और हाँ ये सत्य मान है मैंने,
जिनके जीवन में गुरु नहीं
उनका जीवन शुरू नहीं।।