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Rita Chauhan

Tragedy

4.7  

Rita Chauhan

Tragedy

काश !!

काश !!

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समय की तेज़ गति से ,

उसके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर ,

वो तेज़ दौड़े जा रहा था।


कभी दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में

और कभी और आगे निकलने की होड़ में ,

जिस सब को पाने के लिए वो दौड़ रहा था ,

सम्भवता वही था जो पीछे छूट रहा था।


और अर्थ कमाने की होड़ में भूल गया करना आराम ,

पर उसे विश्वास था की बहुत सारा अर्थ आने पर

वो कर सकेगा चैन से आराम।


कई लोग उससे पीछे रह गए इस दौड़ में ,

बहुत से आनंद के पलों का ले

न सका आनंद वो ,

अपनों से बात करना भूल गया वो भागने की इस होड़ में।


जानता नहीं था बाकी सबका भी तो समय निकला जा रहा था ,

समय कब उन्हें हमेशा के लिए बैठा कर रखने वाला था उसके लिए ?

स्वयं का भी ध्यान कहाँ रख पाया वो,

सेहत थी तो अर्थ कमाया ,

आज उसे ही चिकित्स्कों पर लुटा रहा है।


आज जब साँसे मद्धम हो चली हैं ,

तब वो बीता ज़माना उसे याद हो आया है।

काश कि वो जी पाता अपनों के साथ

हर वो पल जिन्हे उसके अपने तरसते रहे हर क्षण।


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