काश !!
काश !!
समय की तेज़ गति से ,
उसके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर ,
वो तेज़ दौड़े जा रहा था।
कभी दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ में
और कभी और आगे निकलने की होड़ में ,
जिस सब को पाने के लिए वो दौड़ रहा था ,
सम्भवता वही था जो पीछे छूट रहा था।
और अर्थ कमाने की होड़ में भूल गया करना आराम ,
पर उसे विश्वास था की बहुत सारा अर्थ आने पर
वो कर सकेगा चैन से आराम।
कई लोग उससे पीछे रह गए इस दौड़ में ,
बहुत से आनंद के पलों का ले
न सका आनंद वो ,
अपनों से बात करना भूल गया वो भागने की इस होड़ में।
जानता नहीं था बाकी सबका भी तो समय निकला जा रहा था ,
समय कब उन्हें हमेशा के लिए बैठा कर रखने वाला था उसके लिए ?
स्वयं का भी ध्यान कहाँ रख पाया वो,
सेहत थी तो अर्थ कमाया ,
आज उसे ही चिकित्स्कों पर लुटा रहा है।
आज जब साँसे मद्धम हो चली हैं ,
तब वो बीता ज़माना उसे याद हो आया है।
काश कि वो जी पाता अपनों के साथ
हर वो पल जिन्हे उसके अपने तरसते रहे हर क्षण।