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Rita Chauhan

Inspirational

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Rita Chauhan

Inspirational

शिक्षक दिवस पर कविता

शिक्षक दिवस पर कविता

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जिन गलतियों पर मम्मी पापा

कई दिनों तक गुस्सा रहते थे ,

उन्ही गलतियों को आपका

पल में भूल जाना ,

मुझसे सॉरी बुलवाकर

झट से क्षमा कर देना।


वो अक्सर मेरी शरारतों को अनदेखा कर ,

मुझे प्यार से समझाना।

वो मेरे हर छोटे से सार्थक प्रयास पर,

मुझे शाबाशी देना।


वो मुझे थोड़ा सा दुखी देख,

आपका प्यार से मेरे सर को सहलाना।

वो मैदान में खेलते वक़्त ,

मेरे गिर जाने पर दौड़कर मुझे उठाना।


कुछ नहीं हुआ बच्चे ,

थोड़ी सी चोट है ,

अभी ठीक हो जाएगी

कहकर मुझे बहलाना।


प्यार से मुझे मेडिकल रूम

में लेजाना और

मेरा ध्यान बटाते हुए ,

डेटोल लगाना। 

मेरे रोने पर मुझे टॉफ़ी

देकर पट्टी लगाना।


माँ तो फिर भी डांट दिया करती,

की इतनी शरारत करता है ,

चोट तो लगेगी ही न।

वो आपका माँ से भी ज़्यादा

माँ बन जाना।


सच में सब बहुत अच्छा चल रहा था ,

जब मई छोटा था और आप

मेरे पास थीं।

पर असली कहानी तो तब शुरू हुई

जब मैं बड़ा हुआ !!!


बढ़ती पढ़ाई के साथ ,

खोने लगा था बचपन।

क्यों ये सब हमें

पढ़ाने में लगे हैं ??

ये सोचकर रोया करता

बेचारा मेरा मन।


फिर मेरा ध्यान पढ़ाई से

दूर होने लगा ,

विद्यालय में और भी

बहुत सी चीज़ें हैं करने के लिए ,

ये मैंने अन्वेषण किया।


गणित के पीरियड में

मैम पढ़ा रही थीं गिनती ,

और मैं तो साइकिल स्टैंड में खड़ी

साइकिलें गिनने में लगा था।


विज्ञान के पीरियड में सब

पढ़ रहे थे ध्वनि।

यूँ इतनी साड़ी साइकिलों को

यदि लात मार कर गिरा दिया जाए

तो क्या ध्वनि आएगी न !!!

ये मेरे मन में चल रहा था।


हिंदी में समझाया जा रहा था

काव्य सौंदर्य ,

मैं तो खिड़की से झांकते

बादलों का सौंदर्य

जानने में लगा था।


जी चुराने लगा था मैं पढ़ाई से ,

अब लगभग सभी से डांट

मैं खाता था,

और तभी तो अक्सर सबको ,

कक्षा बाहर खड़ा नज़र आता था।

और कुछ ही देर में पूरे विद्यालय को

अच्छे से 'एक्स्प्लोर' करके ,

पीरियड समाप्त होने से पहले ,

वापिस आ जाया करता था।


रोज़ बाहर खड़े होने के कारण

बढ़ रहा था मेरे सामान्य ज्ञान

का दायरा।

मुझे रोज़ बाहर खड़ा करके ,

मेरे सामान्य ज्ञान को

बढ़ाने वालीं आप थीं,

और

क्या हुआ बेटा ,

क्यों बाहर खड़े हो ?

'जाओ सॉरी बोलो मैम को '

कहकर इस ज्ञान पर

रोक लगाने वाली भी

आप ही थीं।


सब अच्छे से याद है ,

आपके क्लास में न होने पर ,

आपकी नक़ल उतारना,

वो शिक्षक दिवस पर ,

पूरे हृदय से , आपके लिए

उपहार बनाना।


 वो गलियारे में घूमते हुए ,

पकड़े जाने पर अजीबो गरीब

बहाने बनाना।

वो आपका सब कुछ समझते

हुए भी , हमारी बात मान जाना।

दूसरी ओर से आते हुए

प्रिंसिपल सर के गुस्से से ,

हमे बचाना।

और फिर अपनी इस उपलब्धि पर

हमारा कंधे उठाकर चलना।


वो आपका मुड़कर देखना और

धीमे से मुस्कुराना।

वो विद्यालय के वार्षिकोत्सव में

अच्छे से हमारा साथ देना।

वो कभी कभी हमारे साथ

खाना खाना।

वो हमारी मेहनत देखकर ,

हमारे थक जाने पर ,

कैंटीन में हमे समोसे खिलाना।


वो हमारा इतना ध्यान रखना ,

हमें ढेर सारा प्यार देना।

जहाँ से भागने के

रोज़ बनाते थे बहाने,

फेयरवेल से पहले बार -बार

जाकर अपना विद्यालय

देख रहे थे। 

वो हमारे फेयरवेल पर ,

हमारे साथ- साथ आपकी भी

आँखों का नम होना।


जब पता था की एक दिन

चले जाएंगे हम

ये विद्यालय छोड़कर ,

तब भी पूरी मेहनत और

निष्ठा से पढ़ाया और अपनाया

था आपने।


आज जब पलटकर देखा

ज़िन्दगी के पन्नो को ,

तो समझ आया ,


गुरु शिष्य परंपरा को अपनाने वाला ,

भारत देश सच में है महान,

और आपने भी तो अपनाया था

इसे ससम्मान।


यदि देतीं न आप साथ तो

जो मैं आज हूँ ,

वो बनना मुश्किल था।


कच्ची मिटटी के इस पुतले को

सजीव आकृति बनाने वाली

आप थीं।

मुझे जीवन जीना सीखाने वाली

भी आप थीं।

सोचना और समझना कैसे हैं ,

ये बताने वाली

आप थीं।

 

मुझे इतने हक़ से

डांटने वाली भी आप थीं।

मुझे ढेर सारा प्यार देने वाली भी

आप ही थीं।


मेरे जीवन की पुस्तक लिखने वाली

आप थीं।

ये सही है की इसमें मेरी लगन ,

मेहनत और आपके प्रति समर्पण

भी शामिल है।

पर सच तो यही है ना

की ये सब सीखाने वाली भी

तो आप ही थीं।

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।


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