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Rita Chauhan

Inspirational

4.7  

Rita Chauhan

Inspirational

आत्म - मंथन

आत्म - मंथन

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हे प्रभु करो मेरी समस्या का निदान

ये जीवन क्यों और कैसे जीना है ?

कृपा कर दें मुझे इसका ज्ञान।

 

हे मानवमेरी संतान

तुझे करना होगा जग कल्याण।

पर उससे पहले करना सीख आत्म - उत्थान। 

बहुत वर्षों पहले देवताओं व् दैत्यों ने 

किया था समुद्र मंथन

आज वही मंथन तुझे करना होगा स्वयं के भीतर। 


उठ जाग और अपनी शक्ति को पहचान

कर स्वयं और इस मानव जीवन का सम्मान।

 

यूँही इसे नष्ट कर देना न ही तुझे हितकर होगा

स्वयं को जान

तो ही ये जीवन कल्याणकार सिद्ध होगा। 


इन्द्रियाँ हैंतो सुख भोगना भी सही है

पर दास बनना ज़रूरी नहीं

कई श्रेष्ठतम लोगों ने स्वामी बनकर

इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की है।


कल किसने देखासही समय आज ही है

जिसने कल पर छोड़ा काम है

समय ने सदैव उसकी अवज्ञा ही की है। 


कौन रोकता है तुझे आत्म - उत्थान से ?

थोड़ा ठहर और कुछ क्षण पास बैठ मेरे

मैं मिलवाऊंगा तुझे तेरे वास्तविक सम्मान से। 

 

क्या हुआ जो इतना परेशान है ?

थोड़ा धैर्य से देख स्वयं को

कितना असीम और अतुलनीय 

छिपा तेरे अंदर ज्ञान है। 


क्यों दूसरों को पहचानने और

सुधारने में लगा है तू ?

क्यों उनके व्यवहार से परेशान है ?

जब मैं स्वयं हूँ तेरे साथ

तो तेरी आत्मिक उन्नति में

कैसा व्यवधान है ?


एक बात अवश्य ही सत्य है

तेरे अंदर है छुपी वो शक्ति

जो तुझे कभी हारने नहीं दे सकती।

बस एक काम है जो तुझे है करना

थोड़ा समय स्वयं को देकर

है स्वयं को ही जानना।


चल आज मैं तेरा तुझसे ही 

परिचय कराता हूँ

सारे संशय सारे दुःख

सारे मानसिक तनाव

अभी यहीं दूर कराता हूँ। 


सच्चे और शांत मन से

कुछ पल बैठ तो मेरे पास 

तुझे जल्द ही होगी आत्म अनुभूति

ये दिलाता हूँ मैं तुझे विश्वास।

 

मन में आएंगे बहुत से विचार

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ज़्यादा चिंता की आवश्यकता नहीं

कर डालो उनका मंथन

बना स्वयं मन की मथनी।


प्रथम निकलेंगी नकारत्मकताएँ

देंगी ' हलाहल' सी अगन

उन्ही को तो पहले दूर करना है

तभी तो कुछ रिक्त होकर

स्वयं को जानने में

हो सकेगा तू मगन।


देखो थोड़े रिक्त हुए

अपने मन के भीतर

जो चाहे वो करने की असीम शक्ति

है तुम्हारे अंदर।

' कामधेनु ' सी असीम चमत्कारिक

शक्तियां हैं तेरी धरोहर

 

जैसे ही इस शक्ति का होगा पदार्पण

अश्व सा चंचल मन दिखाने लगेगा

तुझे दर्पण


तब तुझे ही उसे थामकर

उचित दिशा में मोड़ना होगा

और तब अवश्य ही ये जीवन

' उच्चैःश्रवा ' सा यशवंत होगा।

 

मन के और गहन मंथन पर

तू देखेगा स्वयं में

कौस्तुभ मणि सा तेज व्

ऐरावत सा बल।


जब तू स्वयं अपने

मन का स्वामी होगा

तो कल्पवृक्ष जैसे सभी

सार्थक इच्छाओं की पूर्ती करेगा।

 

रम्भा सा सुन्दर मन 

लक्ष्मी सी समृद्धि

वारुणी सा योग

चन्द्रमा सी शीतलता

पारिजात से औषधीय गुण

स्वयं होंगे तुझमे विदयमान।

 

शंख की ध्वनि सी समृद्धि

सुख और शान्ति से होगा

जीवन गुंजायमान

और लो अब आ ही गया समय

जब निकट है तेरा सम्पूर्ण

आत्मिक उत्थान।

  

अब कोई नकारात्मकता नहीं

कोई द्वेषकोई बैर नहीं

कोई रोग नहीं अब शेष है


स्वयं धन्वंतरि बना तेरा मन

करा रहा है तुझे अमृत पान।

 

ये देह ही है बस नश्वर

और आत्मा से हूँ मैं अमर

ये हो गया है तुझको ज्ञान

और अब हो चुका है तेरा

सम्पूर्ण 'आत्मिक - उत्थान। 


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