मैंने देखा है
मैंने देखा है


वैराग्य मन्न में भी भावनाएं उमड़ आती हैं
मैंने रात अमावस्या में अंधेरे को करवट बदलते देखा है
भोर से रजनी तक आत्मा विरूद्ध काम करते हैं
मैंने तो यहां ज़िन्दगी को भी रोज दम तोड़ते देखा है
कलियुग में क्या पाप है क्या पुण्य है कोई बतलाए
मैंने तो गुनहगारों को संसद में कानून बनाते देखा है
छोटी से छोटी घटना पर मत्था टेकते हैं श्रद्धालु
मैंने तो पत्थर के मूरत में आस्था महकते देखा है
ग्रंथों वेदों कर्मो से प्रेम सद्भाव धर्म का मर्म बताया
मैंने राम रहीम के नाम पर धर्म को लहूलुहान होते देखा है
नाते रिश्ते प्रेम सम्मान को लोग भुला बैठे हैं
मैंने तो जन्म दायनी माता को वृद्धाश्रम में रोते देखा है
आश्चर्य है लोग साश्वत मृत्यु को भी झुठला देते हैं
मैंने तो मरकर अमर होते लोगो को भी यहां देखा है
गरीबी एक अभिशाप है जो विष की भांति पल पल डंसता
मैंने मांस की चद्दर ओढ़े कंकाल को हस्ते
खेलते देखा है
भूख से बिलखती आंखों से उम्मीद ने भी नाता तोड़ लिया
मैंने बरसात में भी नम ना हुई आंखों को रोते भीगते देखा है
जाने किस उदासी में गमगीन है मनुष्य आज का
मैंने तो यहां खुशी को भी खुदखुशी करते देखा है
मती पर कुंडली मार बैठा है विषेला सर्प
मैंने तो यहां रखवालों पर भी पत्थर पड़ते देखा है
खोना पाना जीतना हारना ये तो मन की मिथ्या है
मैंने तो नेत्रहीन आंखो को संसार में खुशियां रंगते देखा है
कमजोरों दीन दुखियों का नित्य होता यहां सोषण दमन
मैंने तो छोटे से दीप को भी भवन जलाते देखा है
मदद तो क्या हक तक देने से कतराते यहां लोग
मैंने तो सूर्य को भी धूप चुराते देखा है
अधिकारों दायित्वों का हनन यहां सभी करते हैं
मैंने समाजसेवियों को नारी का भक्षण करते देखा है
हम देखते सहते सब कुछ यहां पर फिर भी
मैंने शोकसागर में डूबी आंखों में आशा को हंसते देखा है।