जल ही जीवन है
जल ही जीवन है
मैं जल हूँ, मैं जीवन हूँ, मैं ही हर जीवों के कण - कण में हूँ।
मैं गंगा हूँ, मैं यमुना हूँ, मैं धरती पर जीवों के लिए ही आई हूँ ।।
मैं समंदर में हूँ, मैं नदियों में हूँ, मैं सरोवर में हूँ, मैं महादेव के जटा में भी हूँ ।
मैं झरना में हूँ, मैं नल में हूँ, मैं मटका में हूँ, मैं बादलों के घटा में भी हूँ ।।
मैं छूत हूँ तो मैं अछूत भी हूँ, मग़र सब जीवों में प्राण रूपी रूप हूँ ।
मैं भूत हूँ, मैं ही वर्तमान हूँ, मैं भविष्य हूँ तो समय के अनुरूप भी हूँ ।।
मैं शीतल हूँ, मैं निर्मल भी हूँ, कहीं ठहरती हूँ तो कहीं अविरत बहती हूँ ।
मैं जल हूँ, मैं ही जीवन हूँ, जीवों के इस धरा पर मैं मूल प्रकृति हूँ ।।
मैं सदप्रिय हूँ, मैं निष्पक्ष हूँ, बिन भेद - भाव के हर द्वार जाती हूँ
मैं जिज्ञासा हूँ, मैं पिपासा हूँ, मैं हर प्यासे की प्यास बुझाती हूँ ।
मैं अमृत हूँ, मैं मदिरा हूँ, मैं आसमाँ की आँसू हूँ, मैं धरती की प्यास भी हूँ ।
मैं सागर की शान हूँ, मैं नदियों की गुमान हूँ, मग़र! लोगों के कृत से हताश हूँ ।।
Dr Gopal Sahu