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Amrita Mallik

Abstract

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Amrita Mallik

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खामोशियाँ बातों में

खामोशियाँ बातों में

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पहाड़ के किनारे चुप-चुप बैठे झरने की आवाज़ सुनें

न चाहिए मुझे ये दुनिया का शोर न ही झूठा तसल्ली

खामोशियाँ बातों में जो न सुने, न समझे

नहीं है मुझे उनके साथ रहना !


मुझे रहना है नदी, झरने और हरियाली के बीच

कुछ न बोल कर भी कितना कुछ कह जाये 

कभी-कभी पिंजरा तोड़ कर बाहर आना चाहिए

न किसी से डरें न किसी से कुछ कहें !


खामोशियाँ कितना कुछ कह जाती हैं

उत्साही बना देती है मुझे, मिटा देती है सारी बुरी यादें 

हर रोज़ न हो पाए लेकिन महीने में एक ही बार सही

खामोश बन जाती हूं बिना ही कुछ कहे !


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