खामोशियाँ बातों में
खामोशियाँ बातों में
पहाड़ के किनारे चुप-चुप बैठे झरने की आवाज़ सुनें
न चाहिए मुझे ये दुनिया का शोर न ही झूठा तसल्ली
खामोशियाँ बातों में जो न सुने, न समझे
नहीं है मुझे उनके साथ रहना !
मुझे रहना है नदी, झरने और हरियाली के बीच
कुछ न बोल कर भी कितना कुछ कह जाये
कभी-कभी पिंजरा तोड़ कर बाहर आना चाहिए
न किसी से डरें न किसी से कुछ कहें !
खामोशियाँ कितना कुछ कह जाती हैं
उत्साही बना देती है मुझे, मिटा देती है सारी बुरी यादें
हर रोज़ न हो पाए लेकिन महीने में एक ही बार सही
खामोश बन जाती हूं बिना ही कुछ कहे !
