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Kajal Manek

Abstract

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Kajal Manek

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खुद की चाह

खुद की चाह

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बेफिक्र होकर चली हूं अब नई डगर पर,

खुश होकर अकेले ही चली हूं मैं अपने नए सफ़र पर,


न जाने अब तक कहाँ गुम किया था ख़ुद को,

शायद मैंने अब तक पहचाना ही नहीं अपने मन को,


अब जान गयीं हूँ बस अपने सपनों को पूरा कर देना चाहती हूं उड़ान,

अब नहीं महसूस होती अकेलेपन में कोफ्त या थकान,


चल पड़ी हूं अब खुद से प्यार करने की राह पर,

न जाने क्यों अब तक वाकिफ़ नहीं थी खुद की चाह पर,


नारी हमेशा ढूंढ़ती है अपनी खुशियां दूसरों में,

त्याग करती है सुख ढूंढ़ती है अपने अपनों के सपनों में,


अनजान रहती है न जाने क्यों अपने मन की खुद की आह से,

वाकिफ़ नहीं होती वो खुद की चाह से,


बस अब खुद की चाह से होना है वाकिफ़,

ताकि कोई न दे सके मुझे दर्द या तक़लीफ़।


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