अल्हड़ सी नदियां
अल्हड़ सी नदियां


आँगन में बेटियां हैं
अल्हड़ सी ये नदियां हैं
चहकती जैसे बाग में
खिली हुई ये बगिया हैं
रहती अपनी मौज में
करती मन की खोज है
तोड़ती ये समाज की बेड़ियां हैं
अल्हड़ सी ये नदियां हैं
इसी के दम से रौनक घर की
इसने खुद कम में भी गुजर की
तोड़ती ये दकियानूसी हथकड़ियां हैं
अल्हड़ सी ये नदियां हैं
निकली है अकेले ही खुद की खोज में
खुद को जानने का है सुरूर
ये अल्हड़ नदियां कहती हैं
जैसे इन्हें इनका सागर मिलेगा जरूर
दुःखों का पहाड़ टूटने पर भी ढूंढती ये खुशियां हैं
अल्हड़ सी ये नदियां हैं।