2020
2020
वो साल दो हज़ार बीस था
दिलों में उठती एक टीस था
सारा विश्व कर रहा हाहाकर था
अपना ही घर बन गया कारागार था
जीव जंतु विचरते स्वछंद थे
नर नारी सभी घरों में बंद थे
प्रकृति के साथ व्यभिचारी
शायद मानव को पड़ गई थी भारी
मानव जाति का हो रहा विनाश था
काल कर रहा अट्टहास था
नित नए इलाज खोजे जा रहे थे
पर डॉक्टर वैज्ञानिक सब हार रहे थे
आई उस साल पूरब से ऐसी बीमारी
देखते ही देखते जो बन गई वैश्विक महामारी
बच्चे बूढ़े नर नारी थे सभी त्रस्त
पशु पक्षी स्वच्छ जल वायु पा हो रहे मस्त
कोशिश पर कोशिश करती जाती देशों की सरकारें
कुछ हल न निकले कितना ही माथा मारें
समाचार पढ़ सुन कर मन होता परेशान
आज इतने कल उतनो की गई जान
समय जैसे जम सा गया था
काम तो चल रहा था पर विकास थम गया था
फैक्ट्रियां बंद रोज़गार बंद
गरीब मज़दूर हाथ फैला रहा था रोटियों के लिए चंद
मायूसी सब तरफ पसरी पड़ी थी
बड़ी ही विकट समस्या की घड़ी थी
न दिन का पता चलता न तारीख का
सब दिन एक से लगते,
कोई तो फर्क बताए ज़रा बारीक सा
वो साल दो हज़ार बीस था
दिलों में उठती एक टीस था
Social networking' की जगह
'social distancing' ट्रेंड कर रहा था
अब तो जीवन mask, glove aur
sanitizer पर depend कर रहा था
जहां आम आदमी घर में छुपे थे
वहीं superhumans डॉक्टर, नर्स,
पुलिस, सफाईकर्मी,
डिलीवरी ब्वॉयज अपने कर्म में जुटे थे
बिना डरे, बिना रुके कर्त्तव्य पथ पर डटे थे
इस महामारी ने विभिन्न देशों का फर्क मिटा दिया था
क्यूं कि काल तो सबको बराबर मिटा रहा था
मानव पशुओं की भांति पिंजरे में कैद था
मरता क्या न करता,यमराज पहरे पर जो मुस्तैद था
हम भी उस महामारी के महावर्ष का हिस्सा बने
इतिहास में लिखा जानेवाला एक किस्सा बने
आने वाली पीढ़ियों को जब ये कहानी सुनाएंगे
इस अनहोनी को याद करके कुछ आंसू हम भी बहाएंगे
कि वो साल दो हज़ार बीस था दिलों में उठती एक टीस था।