कुछ कही कुछ अनकही कुछ ग़लत कुछ सही मेरे मन के कोलाहल की साक्षी हैं मेरी रचनाएं
बस इतना सा सुकूं चाहिए, ये तो कहने दो कुछ बातें बेमतलब ही रहने दो। बस इतना सा सुकूं चाहिए, ये तो कहने दो कुछ बातें बेमतलब ही रहने दो।
आज फुर्सत मिली है तो खुल के हंसेगे और जिएंगे। आज फुर्सत मिली है तो खुल के हंसेगे और जिएंगे।
ख़ाक भी कर दो तो घुल जाऊंगी हवाओं में। ख़ाक भी कर दो तो घुल जाऊंगी हवाओं में।
कि वो साल दो हज़ार बीस था दिलों में उठती एक टीस था। कि वो साल दो हज़ार बीस था दिलों में उठती एक टीस था।
न अबला असहाय है सह न अत्याचार तू न अबला असहाय है सह न अत्याचार तू