मैं शायर नहीं हूं
मैं शायर नहीं हूं
किसने कहा कि मैं शायर हूं
असल में तो दिल से कायर हूं
जुबान मुकाबला कर नहीं सकती
और दलदल में मैं मर नहीं सकती
फिर जज़्बातों से जब हारती हूं
दूर कौने में जाके छुप जाती हूं
मिलाती हूं जब कड़ी से कड़ी
चलती है कागज कलम की जोड़ी
कहते हैं कलम तेज़ है तलवार से
बचाना है इंसानियत को हर वार से
बस कतार में लफ्ज़ फिर बंद जाते हैं
सफेद कागज़ फिर काले हो जाते हैं
पर हर अफसाने में खुद को पाती हूं
दरअसल इंसान की ही तो जाति हूँ
जिंदगियां जाने क्या क्या सहती हैं
दुनियादारी कलम से फिर बहती है
मैं शायर नहीं बस एक आवाज हूं
जीवन का एक नया आगाज़ हूँ
जो खयालात मेरे तुम तक पहुंचे
वे शायद रुतबे में न हो इतने ऊंचे
ए ज़माने तुम बस यह समझ लेना
मेरा मकसद है फ़कत दस्तक देना....
✍🏼रतना कौल भारद्वाज
