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Supriya Devkar

Abstract Action

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Supriya Devkar

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जो कभी मेरा था

जो कभी मेरा था

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जो कभी मेरा था

सोचा न था बाटना है

निकल पडे थे राह पे 

सोचा न था लौटना है


बटवारा होगया जिदंगीका

अपने लिए ना जी सके

अपनोके बिच खूदको 

नजाने कबका भूल चुके


जिदंगी तो चलती रही 

पैरोके निशान खो गये

अपनोंकी जिदंगी सवारते 

खुदको सवारना भूल गये


उलझने मनमे दबाये

हसते रहे हर घडी 

पत्थर रखे सीने पे 

मुश्किल चढ़ाई यूँ चढ़ी।


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