जख्म
जख्म
जख्म जो तूने दिए
जुर्म क्या था वो बताना
हम तो जोड़ने निकले थे
अच्छा था क्या सताना
वफा चाहते थे थोड़ी सी
बेवफाई का तोहफा दिया
संभाले रखा था दिल को
दर्द का प्याला भी पीया
उम्मीद लगाए बैठे थे हम
पैरो तले सपना टूटा
साथ निभाने का वादा
बेरहमी से कैसे छूटा
वक्त की मार ऐसी पड़ी
संभलने को ना सहारा मिला
आज भी उन लम्हों का
चल रहा है सिलसिला
जख्म अभी भी है दिल में
पर खुद को है समझाया
बस हुई ये आवारगी
खुद ही मरहम है लगवाया