STORYMIRROR

Supriya Devkar

Abstract Tragedy

4  

Supriya Devkar

Abstract Tragedy

तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें

1 min
229

क्यूं चुप्पी साधे बैठी हो 

अब तो कुछ बोलो ना 

कब तक लोगी इम्तहान 

अब तो मौन छोड़ो ना 


तुम और तुम्हारी यादें 

सताती है हर वक्त 

अब तो गुस्सा छोड़ दो 

क्यों हो गयी हो सख्त


तुम्हारी ये खामोशी 

रुला रही है सबको 

हर एक को आस है 

माफ करोगी तुम सबको 


काश वो वक्त फिर से आए 

हँसते खेलते घर को बनाए 

फिर ना होगी अनबन 

तू हमेशा ही मुस्कुराए 

 

ना चाहिए वो सन्नाटा

ना चाहिए उदासी का आलम

तुम ही खुशी से संभालो  

जीवन को लिखने वाली कलम



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract