तुम्हारी यादें
तुम्हारी यादें
क्यूं चुप्पी साधे बैठी हो
अब तो कुछ बोलो ना
कब तक लोगी इम्तहान
अब तो मौन छोड़ो ना
तुम और तुम्हारी यादें
सताती है हर वक्त
अब तो गुस्सा छोड़ दो
क्यों हो गयी हो सख्त
तुम्हारी ये खामोशी
रुला रही है सबको
हर एक को आस है
माफ करोगी तुम सबको
काश वो वक्त फिर से आए
हँसते खेलते घर को बनाए
फिर ना होगी अनबन
तू हमेशा ही मुस्कुराए
ना चाहिए वो सन्नाटा
ना चाहिए उदासी का आलम
तुम ही खुशी से संभालो
जीवन को लिखने वाली कलम।