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Supriya Devkar

Tragedy

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Supriya Devkar

Tragedy

अनचाहे स्पर्श

अनचाहे स्पर्श

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मै नहीं हूं मूर्त सोने की

मेरे पास है मेरा निर्मल मन

क्यों करते हो अन चाहे स्पर्श

मुझे आती है उनकी घिन


कब तक है ये सहना मैने

क्या मकसद है मेरी जिंदगी का

नारी नहीं खिलोना कोई

क्या अधिकार नही उसे जीने का


क्यों होती हूं शिकार हवस का

मन मे है कितना आतंक

देते हो घाव ऐसा

लग जाता माथे पे कलंक।


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