सदियों का इंतजार
सदियों का इंतजार
.सदियों से खड़ा बोधि वृक्ष
इंतजार कर रहा है एक और बुद्ध का।
ना जाने कब खत्म होगा वह इंतजार
जब वापस बुद्ध आएंगे।
और वापस लोगों में जागृति लाएंगे।
और उसी बोधि वृक्ष के नीचे अपना ज्ञान बाटेंगे।
सदियों से इंतजार कर रहा है।
कुंभलगढ़ और चित्तौड़गढ़ वापस। उनके जैसे योद्धाओं का।
उनके जैसे वीरों का।
जिन्होंने इतिहास बनाया है।
सदियों से इंतजार कर रहे हैं।
वे स्थापत्य जिनके पास से हम निकल जाते हैं।
पर जिनको देखने को हम रुकते नहीं।
और इतिहास के पन्नों को उठाकर देखते हैं,
तो पता लगता है कि अरे यह तो हमारे पास में ही था।
हम तो रोज ही इसके सामने से निकलते हैं
मगर हमने कभी इसे देखा ही नहीं।।
सदियों से वीरान पड़े हैं बहुत मंदिर
जो अपना इतिहास कह रहे है।
मगर आज उन में जाने वाला कोई नहीं
उनके भी कपाट बंद है।
जो खुलने का इंतजार कर रहे हैं।।
सदियों से चल रही रूढ़िवादी परंपराएं जिनमें बदलाव जरूरी हैं
जो इंतजार कर रही हैं उनमें सुधार वाद लाने का
मगर सुधार वाद आ ही नहीं रहा।
सदियों से इंतजार कर रहा है
वह पुराना होटल चाय की टपरी।
मगर कोई ग्राहक आ ही नहीं रहाहै।
सदियों से इंतजार हो रहा है यह जातिवाद
हट जाए
मगर यह जातिवाद जा ही नहीं रहा है।