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sargam Bhatt

Abstract Action Inspirational

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sargam Bhatt

Abstract Action Inspirational

बेटी और बहू

बेटी और बहू

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बेटी बनने की चाह नहीं, बहू बना पाओगे क्या?

रिश्ता नया जोड़कर हमसे, हमेशा निभा पाओगे क्या?

मैं हर वक्त सच का ही साथ दूंगी-

मेरी हर सच्चाई को, स्वीकार कर पाओगे क्या?

मैं इंसानियत की जीती जागती मिसाल हूं।

मेरी इंसानियत के नक्शे कदम पर, चल पाओगे क्या?

बेटी बनने की चाह नहीं, बहू बना पाओगे क्या?


बहू हूं तो क्या हुआ, दबकर कभी रहूंगी नहीं।

किसी के ताने अत्याचार, बेवजह सहूंगी नहीं।

जैसे दी है बेटी को आजादी, मुझे भी दे पाओगे क्या?

इंसान हूं, गलती मुझसे भी हो सकती है-

मेरी भी गलती को, भूल पाओगे क्या?

बेटी बनने की चाह नहीं, बहू बना पाओगे क्या ?


मैं सशक्त भी रहूंगी, आत्मनिर्भर भी बनूंगी।

सब कुछ करूंगी, पर आत्मसम्मान नहीं बेचूंगी।

मेरा कभी देर से घर आना, पसंद कर पाओगे क्या ?

सबकी मुश्किल में हाजिर रहूंगी,

मेरा वो पांच दिन का दर्द समझ पाओगे क्या?

बेटी बनने की चाह नहीं, बहू बना पाओगे क्या?


लोग क्या कहेंगे, ऐसी बातें मैं मानती नहीं।

मां-पापा और सास-ससुर में, फर्क मैं जानती नहीं।

मुझसे किया हर एक वादा, निभा पाओगे क्या?

यहां तो हर कोई मेरा अपना है-

आप सब मेरे प्रति समर्पित हो पाओगे क्या?

मुझे दिल से अपना मान पाओगे क्या?

बेटी बनने की चाह नहीं, बहू बना पाओगे क्या?



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