दहेज
दहेज
तुम्हारे हाथों में यह जो अंगूठी है,
उसमें मेरी मां की बाजूबंद टूटी है।
तुम्हारे गले में या जो सोने की चैन है,
यह तो मेरे भाई के पसीने की देन है।
तुम्हारे पास यह जो सबसे महंगी कार है,
उसमें गिरवी मेरे मां-बाप का घर द्वार है।
तुम्हारी इज्जत में जो लगा चार चांद है,
उसमें मेरी पुश्तैनी संपत्ति बर्बाद है।
तुम्हारे अंदर आज जो आया अहंकार है,
दहेज की बलि चढ़ा आज एक और परिवार है।
लाखों पैकेज पर भी दहेज का इकरार है,
रीति-रिवाजों के नाम पर हर दिन त्यौहार है।
इससे अच्छा तो गरीबों का परिवार है,
जहां इज्जत और मान सम्मान की मारामार है।
आगे बढ़ता हुआ पिछड़ा क्यों व्यवहार है,
क्या यही इक्कीसवीं सदी का संसार है।