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Kanchan Prabha

Abstract Tragedy Action

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Kanchan Prabha

Abstract Tragedy Action

तकदीर

तकदीर

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किसकी खुल जाये जाने कब तकदीर यहाँ 

किसकी बदल जाये जाने कब तहरीर यहाँ 

दुनिया में सब जीना चाहे जिंदगी अपनी 

किसे कौन बना डाले अपनी जागीर यहाँ 

किसकी खुल जाये जाने कब तकदीर यहाँ 


बनते बिगड़ते हैं जिन्दगी की तस्वीर यहाँ 

टूट जाते हैैं मजबूत रिश्तों के जंजीर यहाँ 

कुछ भी आसन सा हो गया अब दुनिया में 

मिट जाती है पत्थर पे खींची हुई लकीर यहाँ 

किसकी खुल जाये जाने कब तकदीर यहाँ 


बन तो लाखों जाते है मस्जिद मंंदिर यहाँ

काश कोई बहाता गरीबों केलिये नीर यहाँ 

ऊँचे पद से रिश्ता जोड़ने की चाहत सब रखते 

काश किसी दिव्यांंग के लिये होती कोई हीर यहाँ 

किसकी खुल जाये जाने कब तकदीर यहाँ 


राजनीति में छुटते हैं तीर पर तीर यहाँ 

जनता की कोई कहाँ सुनता पीड़ यहाँ 

अच्छे इन्सानो की कमी सी हो गई है जमाने में 

रिश्वतखोरों की अब होने लगी है भीड़ यहाँ 

किसकी खुल जाये जाने कब तकदीर यहाँ।


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