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Seema Singh

Abstract

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Seema Singh

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मधुमास में मीत

मधुमास में मीत

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आज की रात कटेगी कैसे

मेरे महबूब तू आ जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।


भौंरे गूंजे जो फूलों पर

तो मन भौंरा बन ये बोले।

बिन कहे हाल दिल का मेरे

प्रियतम आज तू सुन ले।।


अंखियां रह रह यूँ बरसे

ओस की बूँदें टपकती जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।


चले बसन्ती हवाएं जब

ये दिल जोरों से धड़कता है।

हरे भरे से इस मौसम में

हृदय ये सूना लगता है।।


कितनी बार कहूँ तुझसे

मुझको छोड़ के तू ना जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।


उड़े पतंगें आसमान में

मन के सपनों को लेकर।

पूरे होंगे कभी ये स्वप्न जो

देखे हमने मिलजुल कर।।


प्रस्फुटित कलियों सा मेरे

मन को अब तू खुश कर जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।


दर्द तो होते ही हैं सदा

नव बीज अंकुरण में।

पुष्पित होकर वो जीत

जाते जीवन के रण में।।


हृदयाघात के जख्मों का

अब तो मरहम तू बन जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।


पतझड़ सा ऑंसू गिरे पर

बसन्त सा ये मन भी खिलता है।

हृदय में बसने पर भी तू आ

मुझको क्यों ना मिलता है।।


कब तक रोती रहूंगी मैं

जीवन में बसन्त तू भर जा।

तेरे बिन सूना लगे ये जहाँ

मधुमास में मीत तू आ जा।।  


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