"बसंत की परख"
"बसंत की परख"
परख बसंत की हो या व्यक्तित्व की,,
परखने वाला समझ सका है ।
जिसकी जैसी क्षमता होती ,,
वैसा ही वो बतलाता है ।।
परख बसंत की .............।।
चकवा चकवी रात को परखे,,
प्रिय वियोग मन मिलन को तरसे ।
बसंत की रात भी ना मिल सके जो ,,
दर्द वही तो समझ सका है ।।
परख बसंत की...................।।
योगी अपने योग को परखे ,,
तन मन से ईश्वर में रमते ।
निराहार जागरण करके ,,
परमब्रह्म को पा क्या सका है ।।
परख बसंत की ..................।।
प्रकृति भी ये मानव को परखे,,
कैसे कैसे दोहन ये करते ।
जैसी करनी वैसी भरनी ,,
पाकर भी ना समझ सका है ।।
परख बसंत की .................।।
भक्तों को भगवन की परखें ,,
कितने ही दुख दर्द में रखते ।
सब भुला जो उन्हें भजा है ,,
कृपा वही भी तो पा सका है ।।
परख बसंत की ..................।।
मेरे मन को भी तू परख ले ,,
खुद की छवि देख मुझमें रम ले ।
बनाया सब कुछ तुझे ही अपना ,,
सोच समझ ईश्वर ने दिया है ।।
परख बसंत की ..... . .......।।
